Tuesday, August 12, 2014

सजा


वो स्व निर्वासन पर था
ईश्वर ने उसे बाध्य किया था
युद्धों की रपट भेजने के लिए
षड्यंत्रो की मुखबरी करने के लिए
शान्ति के असफल प्रयासों के लिए
भूख और खुशी का सूचकांक
उसे एक परचे पर लिख भेजना था
उसे मनुष्य के अधोपतन की
निष्पक्ष समीक्षा लिखनी थी
मनुष्य के तटस्थ होने के कौशल की वजह जाननी थी
उसे धर्म के आतंक के किस्सों से
ईश्वर के लिए रूपक लिखना था
ताकि भरी सभा अट्टाहस से हंस सके
उसे ईश्वर को एक अनुमान भेजना था
मौसम की तरह
मगर उसके पास उपग्रह से प्राप्त चित्र नही थे
धरती का एक हिस्सा बेहद गर्म था
एक बेहद ठंडा
वो बिना रीढ़ के गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ लड़ रहा था
उस पर ईश्वर का दबाव था
तैर कर दुनिया देखने के लिए
वो कवि वैज्ञानिक ज्योतिषी
सबसे मिलकर जानना चाहता था इस ग्रह का भविष्य
ताकि उसकी रपट ईश्वर का विश्वास जीत सके
और उसके जीने की सजा विस्तार पाती रहे
वो ईश्वर का सजायाफ्ता कैदी था
जिसे बुद्धिमान मनुष्य
कहा जाता था इस ग्रह पर
जिसका नाम पृथ्वी है।

© अजीत

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

वाह बहुत सुंदर ।

कविता रावत said...

उस परम परमात्मा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता . सब उसके इशारों पर चलते हैं लेकिन पता नहीं चलता किसी को
बहुत सुन्दर