मंजिल ऐसी किसी को हासिल न हो
दोस्त से मिलने का भी जो दिल न हो
कस्ती मेरी सैलाब में तन्हा लड़ती है
तमाशबीन कभी ऐसा साहिल न हो
बेवजह तुम दुश्मनों पर शक करते हो
देखना दोस्त साजिश में शामिल न हो
इस मयकदें में नशा होता है बहुत
साकी मेरा कहीं कोई कातिल न हो
गुंजाईश बचा कर रखना थोड़ी सी
मुमकिन है इश्क में वो काबिल न हो
© अजीत
दोस्त से मिलने का भी जो दिल न हो
कस्ती मेरी सैलाब में तन्हा लड़ती है
तमाशबीन कभी ऐसा साहिल न हो
बेवजह तुम दुश्मनों पर शक करते हो
देखना दोस्त साजिश में शामिल न हो
इस मयकदें में नशा होता है बहुत
साकी मेरा कहीं कोई कातिल न हो
गुंजाईश बचा कर रखना थोड़ी सी
मुमकिन है इश्क में वो काबिल न हो
© अजीत
1 comment:
वाह बढ़िया है ।
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