नेह के निमन्त्रण
अनौपचारिक थकावट भी साथ लाते थे
आग्रह संकोच की चासनी में लिपटे होते थे
यह सायास किसी के स्थापित जीवन में
दखल का एक नीरस प्रयास जैसा था
हर संदेश कौतुक में बदल जाता था
और सम्वाद कौतुहल में
भीड़ का हिस्सा बनकर
भीड़ से अलग दिखने की कवायद में
शब्दों का तसला उठाते हुए कमर दर्द
जीवन का अभ्यास बन जाता था
संकल्पों की धूरी पर
विकल्पों का चाक बड़ी तेजी से घूमता था
उसकी गति और लय बेमेल थी
वो अधूरे पात्र बनाता था
इस दर से उस दर
दस्तक देते उसके कदम अकड़ गए
मन थक कर चूर हो गया
लोगबाग अपने होने के जश्न में मशगूल थे
बावजूद सबके अपने डर संदेह और शंकाएं थी
बिना किसी को खबर दिए
वो चुपचाप अपना अस्तित्व समेट
दूर निकल गया
इस आवाजाही से किसी को
कोई खास फर्क नही पड़ा
सब कुछ यथावत चला उस दुनिया में
क्योंकि वहां चेहरे बदलते रहे
लोग नही
आभास यथार्थ से विचित्र
कल्पना से खतरनाक और
सच से बदरंग हो सकता है
ये उसने निर्वासित होकर जाना।
© अजीत
अनौपचारिक थकावट भी साथ लाते थे
आग्रह संकोच की चासनी में लिपटे होते थे
यह सायास किसी के स्थापित जीवन में
दखल का एक नीरस प्रयास जैसा था
हर संदेश कौतुक में बदल जाता था
और सम्वाद कौतुहल में
भीड़ का हिस्सा बनकर
भीड़ से अलग दिखने की कवायद में
शब्दों का तसला उठाते हुए कमर दर्द
जीवन का अभ्यास बन जाता था
संकल्पों की धूरी पर
विकल्पों का चाक बड़ी तेजी से घूमता था
उसकी गति और लय बेमेल थी
वो अधूरे पात्र बनाता था
इस दर से उस दर
दस्तक देते उसके कदम अकड़ गए
मन थक कर चूर हो गया
लोगबाग अपने होने के जश्न में मशगूल थे
बावजूद सबके अपने डर संदेह और शंकाएं थी
बिना किसी को खबर दिए
वो चुपचाप अपना अस्तित्व समेट
दूर निकल गया
इस आवाजाही से किसी को
कोई खास फर्क नही पड़ा
सब कुछ यथावत चला उस दुनिया में
क्योंकि वहां चेहरे बदलते रहे
लोग नही
आभास यथार्थ से विचित्र
कल्पना से खतरनाक और
सच से बदरंग हो सकता है
ये उसने निर्वासित होकर जाना।
© अजीत
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