मैदान में
क्षितिज देखना
शाम को
ऊबना
दिन में सोना
रात में खोना
हंसते हुए रोना
विचित्र लक्षण है
इसका मतलब
प्रेम और ध्यान के मध्य
निर्जन टापू की तरफ
आपकी कस्ती जा रही है
बिना पतवार के
बस हमें पता नही चलता
और जब पता चलता है
फिर वापसी सम्भव नही होती
उस दिव्य स्थल से
साल में एक बार
ऐसे भटके लोगो का
सतसंग होता है
वहां कोई प्रवचन नही होता
बस एक दूसरे को देखकर
मन ही मन
मुस्कुराते है सब
मै उस टापू पर बैठा
न जाने कब से कविता ही
लिखता जा रहा हूँ
इसे मेरा पागलपन समझा जाए
अधूरापन भी समझ सकते है
मै एक भटका हुआअवधूत हूँ
सिद्ध नही हूँ
कवि तो बिलकुल भी नही।
© अजीत
क्षितिज देखना
शाम को
ऊबना
दिन में सोना
रात में खोना
हंसते हुए रोना
विचित्र लक्षण है
इसका मतलब
प्रेम और ध्यान के मध्य
निर्जन टापू की तरफ
आपकी कस्ती जा रही है
बिना पतवार के
बस हमें पता नही चलता
और जब पता चलता है
फिर वापसी सम्भव नही होती
उस दिव्य स्थल से
साल में एक बार
ऐसे भटके लोगो का
सतसंग होता है
वहां कोई प्रवचन नही होता
बस एक दूसरे को देखकर
मन ही मन
मुस्कुराते है सब
मै उस टापू पर बैठा
न जाने कब से कविता ही
लिखता जा रहा हूँ
इसे मेरा पागलपन समझा जाए
अधूरापन भी समझ सकते है
मै एक भटका हुआअवधूत हूँ
सिद्ध नही हूँ
कवि तो बिलकुल भी नही।
© अजीत
1 comment:
बहुत खूब ।
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