Wednesday, July 16, 2014

फेसबुक बनाम जीवन

फेसबुक के बाहर भी
एक दुनिया सांस लेती है
जहाँ लाइक का मतलब
सिर्फ लाइक नही होता है
जहाँ स्टेट्स हमारे विचार से नही
भौतिक उपलब्धियों से बनते है
जहां लोग स्थाई रूप से
जीवन में टैग रहते है
उन्हें अनटैग करने का भी विकल्प
जीवन नही देता
इस बाहर की दुनिया में
वजूद अक्स से घिनौना हो सकता है
वहां स्टेट्स शेयर करना
दोस्तों को नागवार लग सकता है
यहाँ प्रोफाइल की तस्वीर बार-बार
बदलने की न इजाजत होती है
और न फुरसत
इस दुनिया में
पोस्ट लिखने की नही
पोस्ट पाने की जल्दबाजी दिखती है
यहाँ केवल खुद का जन्मदिन याद रहता है
इस दुनिया में
वक्त और हालात को
अनफॉलो नही कर सकते है
और सबसे बड़ी बात
इस दुनिया में लॉगआउट या डीएक्टिवेट होने
का कोई विकल्प नही मिलता है
केवल दो विकल्प लोग तलाश पाते है
आत्महत्या करो या सिद्ध बन जाओं
जो इन दोनों के मध्य का मार्ग चुनते है
उन्हें क्या तो बुद्ध के लोग समझा जाता है
या फिर भगौड़ा
यह समानांतर दुनिया
फेसबुक की तरह आभासी नही है
परन्तु ये उतनी ही यांत्रिक जरुर है
यहाँ जीवन इंटरनेट और फेसबुकिया प्रोफाइल सा
सहज उपलब्ध है
मगर जीने की वजह
टाइमलाइन की तरह हमारे हाथ में नही है
यही वजह है इस दौर में
जीवन में फेसबुक
और फेसबुक में जीवन
तलाशते हुए लोग एक यंत्र की मदद से
अचानक से आपस में मिल जाते है
और दोस्ती के भ्रम में
अपने अपने हिस्से की यन्त्रणाएं भोगते तथा
आरोपित करते हुए जीने की कला सीखते है
दरअसल, फेसबुक मनुष्य की
अतृप्त अभिलाषाओं का तकनीकी संस्करण है
इसे मनुष्य के दिगम्बर होने का ज्ञानयोग भी
कहा जा सकता है
यह जीवन जितना पारदर्शी भले ही न हो
मगर यह जीवन जैसा जटिल जरुर है
यह बात जीवन से भागे और फेसबुक में अटके
और फेसबुक से भागे जीवन में अटके
किसी सिद्ध से पूछी जा सकती है
ताकि इस कवितानुमा नोट पर
यकीन किया जा सके
बिना मेरी मंशा पर संदेह किए।
© अजीत