Friday, August 15, 2014

क्या तुम अब भी...

क्या तुम अब भी
दस्तखत के नीचे आधी लाइन खींच
दो उदास बिन्दू लगाती हो
क्या तुम अब भी
काजल लगाते समय
खंजन नयन डबडबाती हो
क्या तुम अब भी
अपने बटुए में
चिल्लर भूल जाती हो
क्या तुम अब भी
अपने स्लीपर
मोची से छिपकर सिलवाती हो
क्या तुम अब भी
अपनी हेयरपिन बिस्तर पर
भूल जाती हो
क्या तुम अब भी
किताबों में फुटनोट लगाती हो
क्या तुम अब भी
बेवजह उदास हो जाती हो
क्या तुम अब भी
चाय के प्याली पर
नजरें चुराती हो
ये कुछ सवाल थे
जो पूछने थे तुमसे मिलने पर
मगर तुमसे मिलने पर
एक ही बात पूछ पाया
'कैसी हो तुम'
तुम्हारे एक जवाब ने
इन सब सवालों का जवाब दे दिया
तभी मैंने ये जाना
कि खुश दिखने की कीमत
सच में खुश रहने से बड़ी होती है
आदतें ऐसे बदल जाती है
जैसे बरसात में अचानक
बदल जाता है मौसम
जैसे अचानक हुई मुलाक़ात में
बिलकुल बदल जाते है हम।

© अजीत

1 comment:

wishal krishna said...

............. शब्द में ढाल मै छोटे नहीं करना चाहता आपके भाव को