Wednesday, August 27, 2014

कमजोरी

कमजोर आदमी ही लिख सकता
कमजोर कविता
जी सकता है कमजोर पलों को
पूरी शिद्दत के साथ
इसलिए खुद को
एक कमजोर कवि कहे जाने पर
कोई ऐतराज़ नही है मुझे
हाँ ! कुछ मित्रों को मेरे कवि होने पर
जरुर हो सकता है ऐतराज़
कमजोरी मेरे लिए कभी कमजोरी नही रही
बल्कि ताकत के छद्म अभिमान से
कहीं बढ़कर थी मेरी कमजोरी
कमजोरी ने हमेशा हौसला दिया
अपनी सीमाएं बताने का
कमजोरी ने ताकत दी
माफी मांगने की
अपनी कमजोरी पर खुलकर बात करना
हमेशा खोया आत्मविश्वास अर्जित करने का
तरीका रहा है मेरा
मेरी कमजोरी आत्म आलोचना की
अवैध सन्तान नही है बल्कि
ताकतवर या समझदार न बनने की अनिच्छा भर है
अपनी कमजोरियों को दूर करके मै
सभ्य और ताकतवर नही बनना चाहता हूँ
बल्कि हर कमजोर आदमी का हाथ थाम
उसे चूमना चाहता हूँ
हर रोते हुए शख्स के गले मिल
रोना चाहता हूँ
त्याग कर पुरुषोचित अभिमान
हाशिए पर जीते मनुष्य के दुखों पर
सुबकना चाहता हूँ उसके साथ
आज भी कमजोरियों पर पार पाए शख्स
समझदार भले ही लगें मगर
अपने नही लगते है
अपनेपन को बचाए रखने के लिए
बचा कर रखना चाहता हूँ अपनी कमजोरी
इस दौर में जहां रोज़ हमें समझदार दिखना पड़ता है
अपनी कमजोरियों के साथ
निपट बुद्धू ही ठीक हूँ मै
संसार में यह संतुलन जरूरी है
वरना समझदार और ताकतवर लोगो से
दुनिया बहुत यांत्रिक और नीरस लगने लगेगी
चूंकि संयोग से मै भी एक मनुष्य हूँ इसलिए
जितनी जिम्मेदारी ताकतवर लोगो की
इस सृष्टि को बचाने की है
उतनी ही मेरी भी है
मेरा दायित्व बोध यही कहता है
भले ही मै एक कमजोर इंसान हूँ ।

© अजीत

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

कमजोर ताकतवर या ताकतवर कमजोर ?

बहुत सुंदर ।