खुद को इस तरह से सजा देता हूँ
लिखता हूँ लिखकर मिटा देता हूँ
बुलंदी से तकलीफ तुम्हें होती है
समन्दर में घर अपना बना लेता हूँ
तेरी महफिल तेरा साकी तेरी अना
यही बहुत है जाम अपना उठा लेता हूँ
सियासी रसूखों के किस्से हमें न बता
ऐसे ताल्लुक मै फूंक से उड़ा देता हूँ
बड़ी तेजी से करीब तुम आ गए हो
चलो तुम्हें तुम्हारी हद बता देता हूँ
© अजीत
लिखता हूँ लिखकर मिटा देता हूँ
बुलंदी से तकलीफ तुम्हें होती है
समन्दर में घर अपना बना लेता हूँ
तेरी महफिल तेरा साकी तेरी अना
यही बहुत है जाम अपना उठा लेता हूँ
सियासी रसूखों के किस्से हमें न बता
ऐसे ताल्लुक मै फूंक से उड़ा देता हूँ
बड़ी तेजी से करीब तुम आ गए हो
चलो तुम्हें तुम्हारी हद बता देता हूँ
© अजीत
2 comments:
वाह ।
Post a Comment