नदी अकेले गीत नही गाती
उसे किनारों तक आना होता है
अपनी चोट सुनाने के लिए
समन्दर की इच्छा
कोई नही पूछता
रोज एक इंच बढ़ जाता है उसका तल
वो सूरज से मांगता है मदद
ताकि रह सके सामान्य
झरनें के साथ
गिरता है उसका अकेलापन
दोनों तलों पर होती है
अलग अलग किस्म की चोट
ये केवल पानी की कहानी नही
ये तरल होने की पीड़ा है
जैसे आंसूओं की यात्रा
छोटी प्रतीत होती है
एक आँख का आंसू दूसरी आँख तक
नही जा पाता है
नाक की दीवार
आंसू की तरलता और वेग को
देखनें नही देती
हर संगत दिखनें वाली वस्तु में छिपी होती है
एक गहरी असंगतता
यदि यह छिपाव नही होता
मनुष्य को बर्दाश्त करना
सबसे मुश्किल काम था।
© डॉ.अजीत
उसे किनारों तक आना होता है
अपनी चोट सुनाने के लिए
समन्दर की इच्छा
कोई नही पूछता
रोज एक इंच बढ़ जाता है उसका तल
वो सूरज से मांगता है मदद
ताकि रह सके सामान्य
झरनें के साथ
गिरता है उसका अकेलापन
दोनों तलों पर होती है
अलग अलग किस्म की चोट
ये केवल पानी की कहानी नही
ये तरल होने की पीड़ा है
जैसे आंसूओं की यात्रा
छोटी प्रतीत होती है
एक आँख का आंसू दूसरी आँख तक
नही जा पाता है
नाक की दीवार
आंसू की तरलता और वेग को
देखनें नही देती
हर संगत दिखनें वाली वस्तु में छिपी होती है
एक गहरी असंगतता
यदि यह छिपाव नही होता
मनुष्य को बर्दाश्त करना
सबसे मुश्किल काम था।
© डॉ.अजीत
1 comment:
हर संगत व्स्तु में छिपी हुी है एक गहरी असंगतता।
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