Thursday, April 16, 2015

फोन

फोन (मोबाइल)

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जागता है चौबीसों घंटे
रखता है हिसाब
तारीफ, बुराई
और हिचकियों का।
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मेरे जाने के बाद
मेरा सच जानने वाला
एकमात्र गवाह
यही बचेगा
जिसकी गवाही कोई नही लेगा।
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पहचानता है
मेरी स्पर्शों को
पुरानी प्रेमिका की तरह
आंख का पानी
जब लगता है ऊंगलियों पर
ये आदेश मानने से कर देता है इंकार
विज्ञान इसके सेंसर मे दोष बताता है
जबकि सच है
मेरी तरह अतिसंवेदनशील है यह भी।
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यह महज एक फोन नही है
एक खिडकी है
हमारे बीच
उधर बालों में कंघी होती है
इधर खुशबू आती है
क्लिनिक प्लस की।
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कभी नही करता शिकायत
बेट्री लो, वाईब्रेशन मोड या म्यूट की
दिन में न जाने कितनी बार
छोड देता हूँ अकेला
अपना इतना है
होता है क्या तो
हाथ में दोस्त की तरह
या फिर रहता है दिल से चिपका
बच्चें की तरह।
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फिलहाल
फेसबुक,व्हाट्सएप्प, एसएमएस
इसके दिल की तीन प्रमुख धमनियां है
जब आता है किसी का फोन
ये दिमाग से सोचता है
और काट देता है
इंटरनेट का कनेक्शन
देखना चाहता है हमेशा
मुझे एकतरफा
किसी शुभचिंतक की तरह।
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उदासी और संघर्ष के पलों में
एक आश्वस्ति है इसका होना
लिखना,लिखकर मिटाना
खुद ही खुद को समझाना
देखता है चुपचाप
मेरी कमजोरी जानते हुए भी
उस पर कभी कोई बात नही करेगा
ऐसा तो कोई दोस्त भी नही है मेरा।
***
मुझे लगता है
इसका एकमात्र ऐतराज़
पासवर्ड लगाने से हो सकता है
शायद समझा लेता होगा खुद को
इसी में हम दोनों की भलाई है
नही चाहता मैं भी
मेरे अलावा कोई इसकी तलाशी लें
और करें मुझसें
बेतुके सवाल-जवाब
फिर लाख पासवर्ड लगा हो
इससे कुछ छिपा थोडे ही है मेरा।

© डॉ.अजीत

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