Thursday, April 16, 2015

नदी

नदी
कहती है पहाड़ से
कभी मिलनें आओं
और पहाड़ रो पड़ता है
नदी समझती है बोझ का दर्द
इसलिए फिर नही कहती कुछ
केवल समन्दर जानता है
नदी के आंसूओं का खारापन
क्योंकि
उसके लिए वो बदनाम है
नदी कृतज्ञ है
अंतिम आश्रय के लिए
पहाड़ शर्मिंदा है
प्रथम उच्चाटन के लिए
समन्दर शापित है
चुप रहनें के लिए
नदी पहाड़ समन्दर
एक दुसरे की कभी शिकायत नही करतें
बस देखतें हैं चुपचाप
मजबूरियों का पहाड़ होना
आंसूओं का नदी होना
धैर्य का समन्दर होना।

© डॉ.अजीत

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