कविता जब
कवि से सवाल करती है
कवि हो जाता है
निरुत्तर
कविता इस चुप्पी पर
हंसती है
और हो जाती है
लोकप्रिय।
***
नदी के किनारें
तापमान होता है
कुछ दशमलव कम
ये बात नदी किसी को नही बताती
फिर भी लोग बैठ जाते है
अपना एकांत लेकर
इधर तापमान किनारों का बढ़ता है
उधर झुलसतें है
नदी के तल पर हरे शैवाल।
***
सम्बन्धों का सच
रूपांतरित होने पर
झूठ लगनें लगता है
जबकि सच को शाश्वत बतातें है लोग
झूठ रूपांतरित नही हो पाता
इसलिए यह सांत्वना देता है
सच के आतंक के बीच
हमेशा नही मगर कभी-कभी।
***
पत्थर के अन्तस् में
नमी रहती है
कुछ मिलीमीटर में
उसी के सहारे
वो झेल पाता है
ठोकरें और चोट
जिस दिन टूटता है पत्थर
नमी भी टूट जाती है
मगर वो बिखरती नही
नमी पत्थर का अभिमान है।
© डॉ. अजीत
कवि से सवाल करती है
कवि हो जाता है
निरुत्तर
कविता इस चुप्पी पर
हंसती है
और हो जाती है
लोकप्रिय।
***
नदी के किनारें
तापमान होता है
कुछ दशमलव कम
ये बात नदी किसी को नही बताती
फिर भी लोग बैठ जाते है
अपना एकांत लेकर
इधर तापमान किनारों का बढ़ता है
उधर झुलसतें है
नदी के तल पर हरे शैवाल।
***
सम्बन्धों का सच
रूपांतरित होने पर
झूठ लगनें लगता है
जबकि सच को शाश्वत बतातें है लोग
झूठ रूपांतरित नही हो पाता
इसलिए यह सांत्वना देता है
सच के आतंक के बीच
हमेशा नही मगर कभी-कभी।
***
पत्थर के अन्तस् में
नमी रहती है
कुछ मिलीमीटर में
उसी के सहारे
वो झेल पाता है
ठोकरें और चोट
जिस दिन टूटता है पत्थर
नमी भी टूट जाती है
मगर वो बिखरती नही
नमी पत्थर का अभिमान है।
© डॉ. अजीत
2 comments:
बहुत सुंदर ।
Waah. ..
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