प्रेम आग्रह की विषय वस्तु कब थी
दोस्ती भी नही
परिचय का आग्रह से वैसे भी कोई नाता नही
आग्रह रीढ़ के झुकने का प्रतीक जब से बना
आग्रह मर गया बेमौत
इससे पहले मैं
आग्रह कर पाता
उसनें खारिज की मेरी उपयोगिता
समझ लिया कमजोर
आग्रह इतनी मंद ध्वनि से उच्चारित हुआ कि
खुद मेरे कान भी न सुन पाए
इस दौर में
आग्रह का एक ही अर्थ था
कमजोर और कायर
और दुनिया क्या तो ताकत को पसन्द करती है
या फिर विजेता को
इसलिए
एक तरफ मैं और मेरा आग्रह था अकेला
और दूसरी तरफ थी सारी दुनिया
निस्तेज आग्रह का क्या करता मैं
मैंने उसको रूपांतरित कर दिया
शिकवे शिकायतों में
दुनिया मुझे समझ न पायी
इसी सांत्वना पर जिन्दा हूँ मैं
ये सांत्वना उसी उपेक्षित आग्रह की संतान है
जो रह गया था कभी अनकहा।
© डॉ.अजीत
दोस्ती भी नही
परिचय का आग्रह से वैसे भी कोई नाता नही
आग्रह रीढ़ के झुकने का प्रतीक जब से बना
आग्रह मर गया बेमौत
इससे पहले मैं
आग्रह कर पाता
उसनें खारिज की मेरी उपयोगिता
समझ लिया कमजोर
आग्रह इतनी मंद ध्वनि से उच्चारित हुआ कि
खुद मेरे कान भी न सुन पाए
इस दौर में
आग्रह का एक ही अर्थ था
कमजोर और कायर
और दुनिया क्या तो ताकत को पसन्द करती है
या फिर विजेता को
इसलिए
एक तरफ मैं और मेरा आग्रह था अकेला
और दूसरी तरफ थी सारी दुनिया
निस्तेज आग्रह का क्या करता मैं
मैंने उसको रूपांतरित कर दिया
शिकवे शिकायतों में
दुनिया मुझे समझ न पायी
इसी सांत्वना पर जिन्दा हूँ मैं
ये सांत्वना उसी उपेक्षित आग्रह की संतान है
जो रह गया था कभी अनकहा।
© डॉ.अजीत
1 comment:
दोस्ती हो या प्यार बस हो जाता है । उसमें आग्रह की भूमिका कहां। वह तो बाद में आने की वस्तु है जब प्यार या दोस्ती हो जाये।।
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