Sunday, April 19, 2015

गजल

चेहरें पर आपको जो रौनक नजर आई है
थोड़ी नजरबंदी है थोड़ी हाथ की सफाई है

तन्हा इतना हूँ इस जिंदगी के सफर में
खुद को ही खुद की कहानी सुनाई है

कुछ अदीब इस बात पर मुझसे खफा है
बिना उस्ताद के मैंने कैसे गज़ल बनाई है

मिलते ही पूछते हो अपने मतलब की बात
दोस्त ये बता तालीम किस मदरसे से पाई है

ना काफ़िया ना रदीफ़ ना ख्याल का शऊर है
गजल कहता हूँ शेर मेरे सब के सब हरजाई है

© डॉ. अजीत 

1 comment:

Asha Joglekar said...

ये नजर बंदी और हाथ की सफाई हम औरतों की खासियत है। जरूरी जो होता है कई बार ना होते हुए चेहरे पर रौनक लाना।