Friday, April 3, 2015

बारिश और तुम

कुछ नोट्स बारिश के बारें में
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एक बूँद के पास
मेरे नाम की एक चिट्ठी थी
कुछ बूंदों ने
उसे पढ़ लिया
आधी हंसी
आधी रो पड़ी
और बारिश हो गई।
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धरती नाराज है
बादल से
बादल नाराज़ है
हवा से
हवा नाराज़
पहाड़ो से
ये जो बारिश है
ये नाराजगी की पैदाइश है
इसलिए तुम भी
नाराज हो मुझसे
इतनें हसीन मौसम में।
***
बारिश की
एक अच्छी बात
यह भी है
बारिश बहा ले आती है
शिकायतों की गर्द को
तुम्हारे दर से
मेरे दर।
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टिप टिप पड़ती बूंदे
जैसे तुम्हारी बालियों से होता हुआ
अंखड रुद्राभिषेक
बारिश की हर बूँद
तब लगती
आचमन के जल सी पवित्र।
***
धरती पर जब लिखे जाते है
शिकायत दुःख अवसाद
भिन्न भिन्न लिपियों में
बारिश के बूंदे
आती है उसे धोनें
ताकि दुःखों में
बची रही नवीनता।
***
बारिश में भींगना
नही होता हर बार सुखप्रद
खासकर तब तो
बिलकुल नही
जब आपको भींगकर
आएं छींक
और चाय पिलाने वाला
कोई ना हो।
***
पिछली बारिश के पास
तुम्हारा ऊलहाना था
इस बारिश के पास
तुम्हारी मजबूरी है
अगली बारिश में
मेरे पास केवल छाता होगा
कोई जवाब नही
ध्यान रखना।

© डॉ.अजीत 

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