यादों के बरक्स
महकतें है लम्हें
कुछ पुरकशिस
अहसास रिसते है
आहिस्ता आहिस्ता
स्पर्शों की महक
कपूर की डली बन
उड़ने लगती है
बहकती ही साँसे
नशे की तरह
देह की पीठ पर बैठ
मन करता है बातें
सिमटने लगता है वजूद
धड़कनो का बढ़ना
नब्ज़ का धीमा होना
तुम्हारी यादों के हवाले से
मन के नाद को सुनना
जहां तुम समाधिस्थ
उच्चारित करती हो
मेरा नाम
भोर के मंत्र की माफिक
काया के पुल पर
साँसों का विनिमय
कभी निशब्द
कभी बुदबुदाता
कभी मौन
तुम्हारी यादों के
बैरंग खत
लौट आते है
हर इतवार
जिन्हें चुपके चुपके
पढ़कर
कर देता हूँ
ख्वाबो के हवाले
ख़्वाब तुमसें मिलनें की
ब्रह्माण्ड की सबसे
सुरक्षित जगह है।
©डॉ.अजीत
महकतें है लम्हें
कुछ पुरकशिस
अहसास रिसते है
आहिस्ता आहिस्ता
स्पर्शों की महक
कपूर की डली बन
उड़ने लगती है
बहकती ही साँसे
नशे की तरह
देह की पीठ पर बैठ
मन करता है बातें
सिमटने लगता है वजूद
धड़कनो का बढ़ना
नब्ज़ का धीमा होना
तुम्हारी यादों के हवाले से
मन के नाद को सुनना
जहां तुम समाधिस्थ
उच्चारित करती हो
मेरा नाम
भोर के मंत्र की माफिक
काया के पुल पर
साँसों का विनिमय
कभी निशब्द
कभी बुदबुदाता
कभी मौन
तुम्हारी यादों के
बैरंग खत
लौट आते है
हर इतवार
जिन्हें चुपके चुपके
पढ़कर
कर देता हूँ
ख्वाबो के हवाले
ख़्वाब तुमसें मिलनें की
ब्रह्माण्ड की सबसे
सुरक्षित जगह है।
©डॉ.अजीत
No comments:
Post a Comment