Friday, December 19, 2014

ईएमआई

अंतिम आठ ईएमआई...
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मेरे हिस्से का खर्च लौटाकर
तुम तटस्थ होना चाहती हो
भूल जाती हो
तुमसें कारोबार का नही
दिल का रिश्ता था
सच में लौटाना चाहती हो कुछ
तो लौटा दो साथ बिताएं लम्हें
शायद हो जाए फिर
हिसाब किताब बराबर।
***
तुम्हारा
पलायन अनापेक्षित था
ठीक जैसे
तुम्हारा मिलना भी
तुमनें हर बार चुनी सुविधा
मेरे माथे पर
असुविधा का विज्ञापन छपा था।
***
सिमटना और बिखरना
तुम्हारी एक फूंक पर
निर्भर था
शाम होने से पहलें
तुमनें शमां बुझा दी
अंधेरा हम दोनों के बीच
हिस्सों में पसर गया था।
***
हम खर्च होते रहे
शब्दों के जरिए
मौन रहकर
बचायी जा सकती थी
रिश्तों की जमा पूंजी।
***
तुमनें पढ़ा था
सम्बन्धों का भूगोल
अर्थशास्त्र के साथ
मेरा विषय
मन का विज्ञान था
दर्शन के साथ
असंगत विषयों का विमर्श
निष्प्रोज्य हो जाता है अक्सर।
***
दोष तय करना
उपचारिक प्रयास था
दोनों ने तय किए
अपनें अपनें हिस्सें के
अपराध और सजा भी
ऐसे मुकदमें
विचाराधीन रखना भी
मुश्किल था दोनों के लिए।
***
अच्छी बात यह थी
उम्मीद बाँझ नही हुई थी
वक्त के यहां गिरवी रख बैचेनियां
दोनों देखें गए थे
प्रार्थनारत
अपनें अपनें
निजी मंदिरों में।
***
चाहा था हंस पातें
अपनी भावुक मूर्खताओं पर
देख पातें विस्मय से
एक दुसरे की कमजोरियां
सम्बन्धों की प्रयोगशाला में
दो असफल वैज्ञानिक थे हम
स्नेह सम्बल के पुरूस्कार से वंचित।

© डॉ. अजीत

1 comment:

Unknown said...

हम खर्च होते रहे
शब्दों के जरिए
मौन रहकर
बचायी जा सकती थी
रिश्तों की जमा पूंजी।
***