Wednesday, December 3, 2014

चंद आवारा ख्याल

चंद आवारा ख्याल...
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ऐसे भी खो जाता हूँ
किसी दिन
जैसे बाथरूम में
तुम्हारा हेयरपिन।
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भरता रहता हूँ
आहिस्ता-आहिस्ता
मन की पींग
जैसे हंसते हुए हिलते है
तुम्हारे इयररिंग।
***
नही बांधता कोई
स्नेह के बंधन
रहता हूँ ऐसे
जैसे
चूड़ियों के बीच
तुम्हारे कंगन।
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मेरी खिड़की पर
बरसते है कभी कभी
ऐसे भी बादल
जैसे
आंसूओं के बीच
तुम्हारा फैला हो काजल।
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भीगें पर से अक्सर
भरता हूँ मै उड़ान
जैसे
तुम्हारी अधूरी मुस्कान।
***
उड़ जाते है
तुमसें मिलनें के सारे ख्याल
जैसे
धूप में सूखते तुम्हारे बाल।
***
आईना देख आती है
कभी कभी  मुस्कान
जैसे
तुम्हारे चेहरे की थकान।
***
यादें तुम्हारी
रखती है मुझे एवरग्रीन
जैसे
सर्दी में ख्याल रखें तुम्हारा
तुम्हारी कोल्ड क्रीम।
***
बातें लगने लगती है मुझे
कभी कभी बेहद झूठी
जैसे
तुम्हारी अनामिका की
मैली अंगूठी।
***
पढ़ता हूँ
तेरी खुशबू में रंगे
पुराने खतों की
खूबसूरत लिखावट
जैसे
तुम्हारे तराशे गए नाखूनों की
हो बुनावट।

© डॉ. अजीत

1 comment:

कविता रावत said...

बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना ...