चुपचाप हो जाना
अचानक से
समझदार बनने जैसा है
कुछ चुप्पियाँ
नासमझी की भी होती है
कहते हुए याद आता है
ख़्वाब के बिछड़नें से बड़ा दुःख
ख़्वाब बदलनें का होता है
वक्त की करवट
आहस्ता कोण बदलती है
पीठ पर उगे
शंकाओं के जंगल से गुजर कर
चेहरा नही देखा जा सकता
भले वो आंसूओं से तर हो
सहसा टपकी बूँद
मौसम का अनुमान बिगाड़ देती है जैसे
ठीक वैसे ही
एक चुप बदल देती है
संबंधों का बीजगणित
खुद के प्रश्न खुद के उत्तर से हमेशा
बड़े पाये जाते है
सांसों का अंदर बाहर होना
एक भौतिक प्रक्रिया है
उनके अंतराल को गिनने लगना
एक यौगिक
कहे अनकहे के बीच
शब्दों को वापिस निगलना
अज्ञात किस्म का योग है
मौन और चुप के मध्य
ऊब का आश्रम है
वहां सुस्ताते हुए
नींद नही आती
वहां जो अनुभूतियां होती
उसे योग्यतम शिष्य से भी नही
बांटा जा सकता
रिक्तता से उपजी ऊर्जा का
शक्तिपात खुद पर कर
भस्म या चैतन्य हो जाना
खुद को बचाने का
एकमात्र अज्ञात तरीका है।
© डॉ. अजीत
अचानक से
समझदार बनने जैसा है
कुछ चुप्पियाँ
नासमझी की भी होती है
कहते हुए याद आता है
ख़्वाब के बिछड़नें से बड़ा दुःख
ख़्वाब बदलनें का होता है
वक्त की करवट
आहस्ता कोण बदलती है
पीठ पर उगे
शंकाओं के जंगल से गुजर कर
चेहरा नही देखा जा सकता
भले वो आंसूओं से तर हो
सहसा टपकी बूँद
मौसम का अनुमान बिगाड़ देती है जैसे
ठीक वैसे ही
एक चुप बदल देती है
संबंधों का बीजगणित
खुद के प्रश्न खुद के उत्तर से हमेशा
बड़े पाये जाते है
सांसों का अंदर बाहर होना
एक भौतिक प्रक्रिया है
उनके अंतराल को गिनने लगना
एक यौगिक
कहे अनकहे के बीच
शब्दों को वापिस निगलना
अज्ञात किस्म का योग है
मौन और चुप के मध्य
ऊब का आश्रम है
वहां सुस्ताते हुए
नींद नही आती
वहां जो अनुभूतियां होती
उसे योग्यतम शिष्य से भी नही
बांटा जा सकता
रिक्तता से उपजी ऊर्जा का
शक्तिपात खुद पर कर
भस्म या चैतन्य हो जाना
खुद को बचाने का
एकमात्र अज्ञात तरीका है।
© डॉ. अजीत
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