Tuesday, December 2, 2014

चाहतें

'चाहतों का बाईपास'
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बस इतनी सी चाहत है
मै जो कहूँ
उसे उतना ही समझ जाओं
बिना सन्देह शंका की
जोड़ तोड़ किए।
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बस इतनी चाहत है
सुनों तुम
शब्दों के पीछे ध्वनि
जो रह जाती है
उपेक्षा के शोर में गुम।
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बस इतनी सी चाहत है
घटा दो खुद से कभी
चौबिस घंटे
फिर बातें हो
सिर्फ बेफिक्र बातें।
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बस इतनी सी चाहत है
कहो तुम
सब अनकहा
तुम खाली हो जाओं
और मै भर जाऊं।
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बस इतनी सी चाहत है
साथ बैठकर पीएं
चाय से लेकर शराब
तुम्हारी नसीहतें हो
और मै हंसता चला जाऊं
बेहिसाब।
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बस इतनी सी चाहत है
किसी दिन
तुम्हें सुबह सुबह देखूँ
बिना मुंह धोए हुए
तुम्हारी आँख खुले
और चाय का कप थमा दूं
तुम्हें।
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बस इतनी सी चाहत है
तुम्हें खुश देखकर
मुझे डर न लगें
तुम खुशी को
सम्भालना सीख जाओं
आदतन।
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बस इतनी सी चाहत है
दुआओं में इतना असर बचा रहें
तुम्हें खुदा पर यकीन
और मुझे खुद पर
होता रहे बार बार।
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बस इतनी सी चाहत है
वक्त भले ही फिसलें
तो तुम खर्च न हो
तुम्हारी हंसी ब्याज़ की तरह
मिलती रहें
हर तिमाही।
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बस इतनी सी चाहत है
सफर और मंजिल
दोनों दूर हो जाए
तुम्हारी नजदीकियां
यूं भी करीब आएं
मेरे।

© डॉ.अजीत

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