Friday, December 12, 2014

पॉज़

तो चलूँ
हम्म !
नही..
चलों जाओं
मिलतें हैं।
***
मुश्किल है
हम्म..
अब
देखतें है
देख लेना।
***
सुनों
क्या है यह
पता नही
बनो मत।
***
अच्छा !
बहुत बढ़िया !
खुश रहो
मेरी फ़िक्र छोड़ो।
***
क्या !
पागल हो गए हो
हाँ !
तुम्हारा कुछ नही हो सकता।
***
क्या है !
फिर
मेरी बला से
सुनों ना
सुन लिया
फोन रखो।
***
कहां हो
यहीं
नहीं
क्यों
ओके बाय।
***
ऐसा कैसे
अच्छा
रहने दो बस
ठीक है
जैसी तुम्हारी मर्जी।
***
अरे सुनो तो सही
सुन रही हूँ
हम्म
हो गया
झूठ बोलना
सीख लो पहले किसी से।
***
प्लीज़
ओके
अब
कुछ नही
जस्ट ग्रो अप !
बच्चें नही हो तुम।

© डॉ. अजीत

डिस्क्लेमर: ये कुछ टूटे हुए सम्वाद है इनके कविता होने का मेरा कोई दावा नही है। काव्य समीक्षकों से अग्रिम मुआफ़ी।शब्दों के पॉज़ के बीच बहती कविता यदि आप जी पाएं तो लिखना सफल है बाकि अच्छा बुरा सब मेरा है।



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