Friday, December 5, 2014

सात दिन

'वो सात दिन...'
----

उसने अचानक कहा
अपनी कविताओं को नीचे
कॉपीराईट का निशान क्यों लगाते हो
मैंने कहा
कोई उन्हें चुरा न सकें इसलिए
फिर वो उदास होकर बोली
मेरे लिए भी कभी
कुछ ऐसा सोच लिया करो।
***
उसने लगभग
चिल्लातें हुए कहा
तुम खुद को समझते क्या है
मेरी हंसी छूट गई
और हंसते-हंसते बोला
आधा अधूरा इंसान
वो चिढ़कर बोली
जो हो वही रहो
मोहन राकेश न बनों।
***
उसने एक दिन
चाय का कप थमाते हुए कहा
तुम दिन ब दिन नापसन्द होते जा रहे हो
मैंने चाय की घूंट भरी और कहा
बढ़िया है
फिर से नए सिरे से पसन्द करना मुझे
वो इतनी हंसी कि चाय न पी पायी।
***
उसने एक दिन
हंसते हुए कहा
तुम्हें भूलना आसान नही है
उस हंसी में एक फ़िक्र घुली थी
उसके बाद
मै हंसना भूल गया।
***
उसने एक दिन
चिंतित होकर कहा
बाल उड़ते जा रहे है तुम्हारें
इतना मत सोचा करो
मैंने कहा
सच्ची ! छोड़ देता हूँ
फिर बोली
मेरे बारें में जरूर सोचते रहना।
***
एक शाम उसने
चिढ़कर कहा
तुमसे मिलना मेरी सबसे बड़ी भूल थी
मैंने कहा
भूल सुधार में मदद करूँ कुछ
वो बोली बनो मत !
इस भूल का कोई अफ़सोस नही है मुझे।
***
एक दिन उदास होकर
उसनें कहा
अब तुमसे मिलना सम्भव नही होगा
उस दिन
मै भी चुप हो गया
मेरी हाजिरजवाबी जवाब दे गई थी
उस दिन उदासी का सही अर्थ समझ पाया।

© डॉ. अजीत