Thursday, January 1, 2015

सात मील

सात मील जिंदगी...
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भूख का रिश्ता
जिस्म या रूह से ज्यादा
जरूरत से जुड़ा था
जब से जरूरत रूपांतरित हुई
भूख समाप्त हो गई
इसका एक मतलब
यह भी निकाला जा सकता है
बीमार या भरा हुआ नही था
भूख के लिए समय नही था उसके पास।
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स्पर्शों में
नयापन बचा रहे
इसके लिए जरूरी थी
एक दूरी
त्वचा की स्मृति धोने को
आचमन का जल पर्याप्त था
उसके लिए।
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देह के भूगोल ने
दिए कुछ रिक्त स्थान
मन के आवेगों ने
विकल्प
दर्शन की चैतन्यता ने दी दृष्टि
मन के मनोविज्ञान ने दिए जवाब
कुछ उत्तर संदिग्ध कुछ स्पष्ट थे
प्रायः कृपांक से उत्तीर्ण हुआ
उसका अस्तित्व।
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कुछ प्रश्नों के जवाब नही थे
कुछ के उत्तर अधूरे थे
और कुछ प्रश्न ही गलत थे
ऐसी परीक्षा में हुआ
उसका मूल्यांकन
एक कदम आगे बढ़ने की कीमत
खुद को गलत उसको सही
साबित करके चुकानी थी उसे।
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शब्द एक मीमांसा है
शब्द एक विलास नही
शब्द जब खेलते है हमसे
सुलझा देते है मन के भरम
जब हम खेलते है शब्दों से
उलझा देते है मन व्यकारण
दीक्षांत पर
यही मिला था उसे गुरुमंत्र।
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प्रेम प्रतिक्रिया की उपज नही थी
प्रेम आंतरिक निर्वात का दस्तावेज़ भी नही था
प्रेम स्व निर्वासन पर आश्रय निवेदन भी नही था
प्रेम आग्रह अपेक्षा से भी मुक्त था
इतने नकार के बीच
उसनें बचाए रखी
प्रेम की लौकिकता और पवित्रता
अलौकिक प्रेम काल्पनिक सच है
ये बात ठीक से पता थी उसे।
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परिभाषाएं असंगत थी
अवधारणाएं महीन
सम्बन्धों का समाजशास्त्र आता था
मन की देहरी पर व्याख्यान देने
अपनेपन को समझते हुए
रिश्तों का आकार नापता था दिमाग
आँखें दिल के साथ थी
और दिल था छल में निष्णात
सब कुछ इतना ही अमूर्त था
उन दोनों के बीच।

© डॉ. अजीत


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