Thursday, January 22, 2015

नाराज़गी

तुम्हारा नाराज़ होना: जैसे वक्त का खुदा होना
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मुझ पर नाराज़ होने का
हक सिर्फ तुम्हारा था
गुस्से में तुम ऐसे बरसती
जैसे सावन में बदरी
भीग जाता था
गहरे अपनेपन से
तुम्हारी आखिरी
प्यार भरी बात भले याद न हो
तुम्हारा गुस्सा
रहता है हमेशा याद।
***
लम्बे अरसे से
तुम नाराज़ नही हुई मुझ पर
सन्देह होने लगा है
खुद की समझदारी पर।
***
पहली बार जब तुम
नाराज़ हुई
मुझे बुरा लगा
और जब आख़िरी बार नाराज़ हुई
तब अच्छा लगा
एक यात्रा की पूर्णता थी
तुम्हारी नाराज़गी
प्रायः प्यार से बढ़कर।
***
कभी कभी तुम इतनी
तल्ख हो जाती थी
बातचीत में कि
सन्देह होने लगता था
तुम्हारे स्त्री मन पर
दरअसल तुम्हारी वो तल्खी
मुझे भीड़ में खोने से बचाने की थी
यह समझ पाया तुम्हें खोकर।
***
नाराज़गी में कर देती तुम
बातचीत बंद
नही उठाती फोन
नही देती जवाब किसी एसएमएस का
फिर भी हो जाती थी
हमारी बातें आपस में
नाराज़गी में
मेरे सबसे करीब रहती थी तुम
ख्याल रखना किसे कहते है
समझ पाया
तुम्हारी नाराज़गी में।
***
तुम्हारी नाराज़गी ने
कभी इतना नही डराया कि
तुमसे प्रेम करने में असुविधा हो
तुम्हारी नाराज़गी
मनुहार नही
थोड़ा समय चाहती थी बस
संयोग से जो भरपूर था
मेरे पास।
***
जब भी तुमसे
नाराज़ होने की सोचता
तुम खुद नाराज़ हो जाती
मन को पढ़ना जानती थी तुम
इसलिए बचा ली
मेरी नाराज़गी
और खर्च कर दी अपनी नाराज़गी।
***
अक्सर तुम्हारी नाराज़गी
इस बात पर होती कि
केवल खुद के लिए जीता हूँ मैं
और
जब तुम्हारे लिए जीना चाहा
तुम नाराज़ हो गई इस पर भी
जीना मेरे जीवन का
सबसे बड़ा अभिशाप था।
***
तुम्हारी नाराज़गी
हमारे अलग होने का
पूर्वाभ्यास थी
यह बात दिमाग समझता था
मगर नाराज़गी
दिल के हिस्से आई
दिमाग हंसता रहा बस।
***
कितनी लम्बी हो गई
इस बार तुम्हारी नाराज़गी
खत्म होनें का नाम नही लेती
मान जाना
कम से कम उससे पहले कि
मै खुद से नाराज़ हो जाऊं
जो तुम कभी नही चाहती।

© डॉ. अजीत

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