काम कितना भी जरूरी हो भले न बिना मेरे होता हो
फोन उठा ही नही सकता जब बच्चा गोद में सोता हो
एक दिन बेवजह हंसने का मतलब समझ जाओगे
चुप करा देना किसी रोते हुए को न जो चुप होता हो
ये बाजार के कायदे तरक्क़ी के हुनर क्या बताओगे
रोज सब कुछ पाकर भी जो सबकुछ यूं ही खोता हो
महलों की रौनक क्या रोक पाएगी देहाती परिन्दें को
थकान के बिस्तर पर ख़्वाबों को बिछाकर जो सोता हो
लबों पर मुस्कान दिल पर छाले मिलेंगे उसके देखना
खुलकर जो हंसता हो अक्सर मगर तन्हाई में रोता हो
© डॉ. अजीत
फोन उठा ही नही सकता जब बच्चा गोद में सोता हो
एक दिन बेवजह हंसने का मतलब समझ जाओगे
चुप करा देना किसी रोते हुए को न जो चुप होता हो
ये बाजार के कायदे तरक्क़ी के हुनर क्या बताओगे
रोज सब कुछ पाकर भी जो सबकुछ यूं ही खोता हो
महलों की रौनक क्या रोक पाएगी देहाती परिन्दें को
थकान के बिस्तर पर ख़्वाबों को बिछाकर जो सोता हो
लबों पर मुस्कान दिल पर छाले मिलेंगे उसके देखना
खुलकर जो हंसता हो अक्सर मगर तन्हाई में रोता हो
© डॉ. अजीत
No comments:
Post a Comment