Saturday, January 10, 2015

पांच बातें

कहनी है पांच बातें...
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बचना था उसके अंदर
आधा अधूरा
इसलिए
बो दिए कुछ ख़्वाब
उसके सिरहाने
भोर के।
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कहना था पूर्ण विराम
अंत से पहले
इसलिए
बदल दिया
सम्बन्धों का व्याकरण
आरम्भ से पहले।
***
बहना था नदी की तरह
चुपचाप
इसलिए छोड़ दिए
किनारें
मात्र एक आलिंगन के बाद।
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रहना था कुकरमुत्ते सा
अज्ञात
इसलिए
चुन ली निष्प्रयोज्य जमीन
और अरुचि की नमी
सफेद जंगल
उतना नैसर्गिक नही था
जितना दिखता था।
***
सहना था
एकपक्षीय रिश्तों का भार
इसलिए
झुका दिए
अह्म के कंधे
चेतना की पीठ
उसकी शर्तों पर।
***
© डॉ. अजीत

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