सपनें कम से कम
मनोरंजन की श्रेणी में
नही रखे जा सकते
मनोविज्ञान भले ही
उन्हें कहे
अतृप्त कामना
या वर्जनाओं के आकर्षण की
अभियक्ति
सपनें दिखाते है
डर असुरक्षा और इनके इर्द गिर्द लिपटी
महत्वकांक्षा
मगर सारे सपनें केवल
इन्ही के नही होते
कुछ सपनें आतें है बेवजह
अमूर्त और शायद ज्यादा गहरे
स्मृति तक नही सम्भाल पाती
उनके छायाचित्र
इन सपनों को नही आता
दिन और रात में भेद करना
उम्र की कोई रियायत
उनके पास नही होती
वो दिखा सकते
कुछ भी
अप्रत्याशित
शायद वो बताना चाहते है
सपनें सावधानी से देखों
बंद आँख का सपना
भले ही गल्प निकल जाए
खुली आँख का सपना
हो जाता है सच एकदिन
बिना हमें बताए
सपनों का सच सपनें बताते है
इसलिए
न यकीन बचता है
न स्मृति
शेष बचता है अफ़सोस
और सपनें न सम्भाल पाने का कौशल
वो भी किसी
अधूरे सपनें की शक्ल में।
© डॉ. अजीत
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