सात वनवास...
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कॉफी का एक मग
चाय की एक कुल्हड़
बीयर की एक कैन
शराब का एक पैग
आंसूओं की जगह पीने के
कितने विकल्प थे
इसलिए नही देख पाई तुम कभी
मेरे आंसू
इसका अर्थ यह नही था कि
बहुत खुश था मैं।
***
दुःखो के चयन में
सुख एक शाश्वस्त छल था
जो बचाये रखता था
दुःख के बीच
अपनी प्रासंगिकता
अपनी अकाल मृत्यु के साथ।
***
हाथों की सरंचना में
अनुपस्थित थी
पुरुषोचित्त कठोरता
इसलिए स्पर्श सुखद थे
परन्तु आश्वस्तिविहीन
तुम्हारा हाथ छूटने की
बड़ी वजह एक यह भी थी।
***
आत्मीयता और आसक्ति के बोझ
जब एकतरफा हुए
बोध रोया दहाड़ मारकर
जानते हुए सब
खुद को ठगना
दिल के साथ
सबसे बड़ी ज्ञात ज्यादती थी।
***
जूतों पर धूल
आँखों में सपनें
जेब में महामृत्युंजय मन्त्र
ये तीन जीवित दस्तावेज़ मिले
उसकी मृत्यु पर
वो इस तरह
जीना चाहता था
उसकी स्मृतियों में।
***
उसे विजेता साहसी योद्धा
पसन्द थे
पलायन बर्दाश्त नही कर सकती थी वो
उसकी हार पर
वो समझ नही पायी
वो सही थी कि गलत
उसकी हार को
जीत से अलग कर पाना मुश्किल था
उसके लिए।
***
यात्री की धुरी
दलदली जमीन का हिस्सा थी
वहां से निकलना
फंसने की अनिवार्यता लिए था
इसलिए वो लौट आता
खुद से खुद तक
यात्रा पूर्ण होती
अपने अधूरेपन के साथ।
© डॉ. अजीत
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कॉफी का एक मग
चाय की एक कुल्हड़
बीयर की एक कैन
शराब का एक पैग
आंसूओं की जगह पीने के
कितने विकल्प थे
इसलिए नही देख पाई तुम कभी
मेरे आंसू
इसका अर्थ यह नही था कि
बहुत खुश था मैं।
***
दुःखो के चयन में
सुख एक शाश्वस्त छल था
जो बचाये रखता था
दुःख के बीच
अपनी प्रासंगिकता
अपनी अकाल मृत्यु के साथ।
***
हाथों की सरंचना में
अनुपस्थित थी
पुरुषोचित्त कठोरता
इसलिए स्पर्श सुखद थे
परन्तु आश्वस्तिविहीन
तुम्हारा हाथ छूटने की
बड़ी वजह एक यह भी थी।
***
आत्मीयता और आसक्ति के बोझ
जब एकतरफा हुए
बोध रोया दहाड़ मारकर
जानते हुए सब
खुद को ठगना
दिल के साथ
सबसे बड़ी ज्ञात ज्यादती थी।
***
जूतों पर धूल
आँखों में सपनें
जेब में महामृत्युंजय मन्त्र
ये तीन जीवित दस्तावेज़ मिले
उसकी मृत्यु पर
वो इस तरह
जीना चाहता था
उसकी स्मृतियों में।
***
उसे विजेता साहसी योद्धा
पसन्द थे
पलायन बर्दाश्त नही कर सकती थी वो
उसकी हार पर
वो समझ नही पायी
वो सही थी कि गलत
उसकी हार को
जीत से अलग कर पाना मुश्किल था
उसके लिए।
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यात्री की धुरी
दलदली जमीन का हिस्सा थी
वहां से निकलना
फंसने की अनिवार्यता लिए था
इसलिए वो लौट आता
खुद से खुद तक
यात्रा पूर्ण होती
अपने अधूरेपन के साथ।
© डॉ. अजीत
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