थके कदमों से
लौट आता हूँ
उस बिस्तर की ओर
जो रोज़ सुबह
गर्द के रूप में
झाड़ देता है
संचित पुरुषार्थ
निस्तेज होने से पूर्व की करवट
निराशा को ओढ़ने से
करती है इनकार
एकमात्र इसी कारण से
बिस्तर सहता है
अपवाद का बोझ।
© डॉ.अजीत
लौट आता हूँ
उस बिस्तर की ओर
जो रोज़ सुबह
गर्द के रूप में
झाड़ देता है
संचित पुरुषार्थ
निस्तेज होने से पूर्व की करवट
निराशा को ओढ़ने से
करती है इनकार
एकमात्र इसी कारण से
बिस्तर सहता है
अपवाद का बोझ।
© डॉ.अजीत
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