Wednesday, January 7, 2015

नजरअंदाज़

जीवन के अमूर्त
स्थापत्य में छूट जाती है
अनायास ही
बेहद मामूली चीज़े
जैसे सुंदरतम रचना में छूट जाता है
एक छोटा सा भाव
नजरअंदाज़ करने की कला
बन सकती है जीवन का बड़ा सूत्र
बशर्ते
छूटी हुई चीज़ो के प्रति
समानुभूति हो
यात्रा के अनावरण में
छिपी होती है तैयारी
आकर्षण अज्ञात से बड़ा
ज्ञात का हो सकता है
देखते हुए मन का एकांत
निर्वात को सूंघ लेना
बड़ी बात हो सकती है मगर
उतनी भी बड़ी नही कि
खुद को सिद्ध मान लिया जाए
त्रुटि का होना एक संकेत है
या फिर अस्तित्व का अह्म पर वार
जिसे देखने के लिए
लौटना पड़ता है
आरम्भिक बिंदू पर
एक छोटी सी तैयारी के साथ
दरअसल
छूटना या छोड़ देना
दो अलग चीजे है
जिनका भेद तब समझ आता है
जब इनका हिस्सा बनते है हम
विभाजित होनें का दुःख
अकेला होने से छोटा होता है
तभी
भीड़ का एकांत
मन के निर्वात को धकेल देता है
गलतियों के जंगल में
वहां से बेहताशा दौड़ते हुए
खुद तक लौटते है हम
थकावट ऐसी छोटी मोटी गलतियों को
नजरअदाज़ कर भी दें
हम नही कर पाते
खुद को नजरअंदाज़ कभी।

© डॉ. अजीत 

1 comment:

Satish Saxena said...

बहुत खूब ………
मंगलकामनाएं !