सात कोरे अनुमान ...
--------------
मुझे जब मिली तुम
अपने हिस्से का प्रेम कर चुकी थी
मेरे हिस्से आई
प्रेम की गुठली
जिसे बो दिया मैंने
खुद के अंदर
अब वो वटवृक्ष है
कभी थक जाओं तो
सुस्ताने आ जाना
निसंकोच
उसी के नीचे मिलूँगा
समाधिस्थ
तुम्हारी प्रतिक्षा में।
***
प्रेम कब देखता है
उम्र,कद,पद और हद
ये होता है बेहद और बेतरतीब
प्रेम का होना एक घटना है
और प्रेम में होना एक उपलब्धि
जिसका पता चलता है
प्रेम को खोकर।
***
तुम्हारे अंदर
एक सूखती झील थी
अनुपयोगी समझ
जिसके किनारे टूट रहे थे
खुद ब खुद
मैंने देखा उसके तल में
बैठा प्रेम
उसका जलस्तर बढ़ाने के लिए
उधार मांग लिए आंसू
प्रेम बेहद तरल था
समझा जाता था जिसे गरल।
***
समानांतर जीवन जीने के
जोखिम बड़े थे
छाया धूप पर आश्रित थी
मेरे हिस्से की धूप
निगल गई थी
तुम्हारे हिस्से का सुख
यह अपराधबोध
प्रेम को चाट रहा था
घुन की तरह।
***
नदी की तरह
तुम्हारे तट
अस्त व्यस्त थे
सागर की तरह मेरी परिधि
अज्ञात थी
ज्वार भाटों की मदद से
देखता था तुम्हारा आना
तुम सूख गई
चार कोस पहले
इसलिए आजतक खारा हूँ मैं।
***
प्रेम रचता है
अधूरेपन के षडयंत्र
ईश्वर की मदद लेकर
दो अधूरी समीकरणों को
सिद्ध करने के लिए
मनुष्य बनाता है प्रमेय
सही उत्तर भी
किसी भी हद तक
हो सकता है गलत प्रेम में
विज्ञान गल्प है प्रेम के समक्ष।
***
खो देगी सम्वेदना
जब त्वचा
स्पर्श हो जाएंगे
जब अनाथ
मेरी पलकों पर
सुरक्षित रहेंगे
तुम्हारी पलकों के निशान
पवित्र आलिंगन की शक्ल में
सम्बन्धों के महाप्रलय के बाद
इतना बचाने में
सफल रहूंगा मैं
एक पराजित योद्धा का यह अंतिम
घोषणा पत्र है।
© डॉ. अजीत
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मुझे जब मिली तुम
अपने हिस्से का प्रेम कर चुकी थी
मेरे हिस्से आई
प्रेम की गुठली
जिसे बो दिया मैंने
खुद के अंदर
अब वो वटवृक्ष है
कभी थक जाओं तो
सुस्ताने आ जाना
निसंकोच
उसी के नीचे मिलूँगा
समाधिस्थ
तुम्हारी प्रतिक्षा में।
***
प्रेम कब देखता है
उम्र,कद,पद और हद
ये होता है बेहद और बेतरतीब
प्रेम का होना एक घटना है
और प्रेम में होना एक उपलब्धि
जिसका पता चलता है
प्रेम को खोकर।
***
तुम्हारे अंदर
एक सूखती झील थी
अनुपयोगी समझ
जिसके किनारे टूट रहे थे
खुद ब खुद
मैंने देखा उसके तल में
बैठा प्रेम
उसका जलस्तर बढ़ाने के लिए
उधार मांग लिए आंसू
प्रेम बेहद तरल था
समझा जाता था जिसे गरल।
***
समानांतर जीवन जीने के
जोखिम बड़े थे
छाया धूप पर आश्रित थी
मेरे हिस्से की धूप
निगल गई थी
तुम्हारे हिस्से का सुख
यह अपराधबोध
प्रेम को चाट रहा था
घुन की तरह।
***
नदी की तरह
तुम्हारे तट
अस्त व्यस्त थे
सागर की तरह मेरी परिधि
अज्ञात थी
ज्वार भाटों की मदद से
देखता था तुम्हारा आना
तुम सूख गई
चार कोस पहले
इसलिए आजतक खारा हूँ मैं।
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प्रेम रचता है
अधूरेपन के षडयंत्र
ईश्वर की मदद लेकर
दो अधूरी समीकरणों को
सिद्ध करने के लिए
मनुष्य बनाता है प्रमेय
सही उत्तर भी
किसी भी हद तक
हो सकता है गलत प्रेम में
विज्ञान गल्प है प्रेम के समक्ष।
***
खो देगी सम्वेदना
जब त्वचा
स्पर्श हो जाएंगे
जब अनाथ
मेरी पलकों पर
सुरक्षित रहेंगे
तुम्हारी पलकों के निशान
पवित्र आलिंगन की शक्ल में
सम्बन्धों के महाप्रलय के बाद
इतना बचाने में
सफल रहूंगा मैं
एक पराजित योद्धा का यह अंतिम
घोषणा पत्र है।
© डॉ. अजीत
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