Friday, January 2, 2015

बदलाव

'तुम्हारे साथ-तुम्हारे बिना'
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तुम्हारे साथ
सीख पाया
खुद का
बेहतर अनुवाद।
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तुम्हारे साथ
विदा कर पाया
मन की असुरक्षाएं
अतृप्त कामनाएं
और अधूरे स्वप्न।
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तुम्हारे साथ
जी पाया
लम्हा-लम्हा
जिंदगी
उम्र छोटी शक्ल बड़ी
होती रही अनुमानों में।

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तुम्हारे साथ
कह पाया
मन की बात
बिना परवाह किए
सीख पाया फर्क करना
बेपरवाही और लापरवाही में।
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तुम्हारे साथ
बह पाया
नदी की तरह
छोड़ समन्दर होने का
अभिमान।
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तुम्हारे बिना
खो दिया
अनुमान
वक्त के बदलनें का।
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तुम्हारे बिना
पा लिया
शब्दों के ब्रह्म को
बिना किसी वरदान के।
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तुम्हारे बिना
महसूस किया
धड़कनों में बंटवारा
आती-जाती रही वो
बिना बोलचाल के।
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तुम्हारे बिना
देख लिया
यातनाओं का समर
अपनत्व के भेद से
मिली सशर्त मुक्ति।
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तुम्हारे बिना
भूल गया
समय का बोध
पीठ पर बांधी
ब्रह्मांड की घड़ी
कलाई पर वक्त की हथकड़ी।

© डॉ. अजीत

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